
जानें संक्षेप में
- दीपिका ने एक हालिया इंटरव्यू में कहा कि 8 घंटे का कामदिन आदर्श होना चाहिए।
- उन्होंने बताया कि अक्सर हम बर्नआउट को प्रतिबद्धता समझ लेते हैं और यह आदत खतरे में डालती है।
- इस बहस का संदर्भ अब फिल्मों और क्रू-वर्किंग कंडीशन्स पर व्यापक चर्चा में आया है।
- कई क्रू-मेम्बर्स और टेक्निशियन्स लंबे समय से अनियमित और 12–16 घंटे की शिफ्ट्स की शिकायत करते रहे हैं, ऐसे में दीपिका की राय उद्योग के भीतर से आने वाली मजबूत आवाज़ मानी जा रही है।
- इंटरव्यू के बाद सोशल मीडिया पर भी वर्क-लाइफ बैलेंस को लेकर बातचीत बढ़ी है, खासकर उन लोगों के बीच जो एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का हिस्सा हैं।
क्या कहा उन्होंने?
- दीपिका ने कहा कि फिल्म-इंडस्ट्री में काम के लंबे, अनियमित घंटों को सामान्य मान लिया गया है और यह गलत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आठ घंटे एक स्वस्थ और व्यवहारिक शिफ्ट की मानक दर होनी चाहिए।
- उन्होंने यह भी जोड़ा कि अक्सर लोग बर्नआउट को “कमिटमेंट” समझ लेते हैं — जबकि असल में यह थकावट और मानसिक-शारीरिक नुकसान का संकेत है।
- उन्होंने कहा कि पेशेवर दक्षता इस बात से नहीं मापी जानी चाहिए कि कोई कितने घंटे सेट पर खड़ा रहा, बल्कि इस बात से कि काम कितनी गुणवत्ता से और कितनी स्थिरता के साथ किया गया।
- उनका कहना था कि उद्योग को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि आराम, सुरक्षा और सीमाएँ भी उतनी ही ज़रूरी हैं जितना कि प्रोडक्शन का समय।
कहाँ/कब
- दीपिका पादुकोण ने यह टिप्पणी हार्पर बाज़ार इंडिया के हालिया कवर-इंटरव्यू में की — यह इंटरव्यू 14–15 नवंबर 2025 को प्रकाशित हुआ।
क्यों महत्वपूर्ण है
- बड़े नामों के खुलकर कहने से सेट-लेवल पर काम की शर्तों, ओवरटाइम भुगतान और क्रू-वेलफेयर की चर्चाएँ तेज होंगी।
- यह बयान एक ऐसे समय आया है जब इंडस्ट्री में प्रोफेशनलिज़्म, मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षित कार्यशैली को लेकर लगातार बहस चल रही है।
- कई लोगों का मानना है कि एक टॉप-टियर एक्ट्रेस द्वारा यह मुद्दा उठाना आगे आने वाले समय में मानक बदलने की दिशा में बड़ा कदम हो सकता है।
दीपिका का बात-चित का मकसद सरल है: काम करने के घंटे और काम का सम्मान दोनों ज़रूरी हैं — और ओवरवर्क को नॉर्मलाइज़ करना अब बदलने लायक गलतफहमी है।


